Mahabharat 23 May Update: चौसर के खेल में युधिष्ठिर हारे अपनी संपत्ति, हुआ द्रौपदी का चीर हरण
महाभारत के अब तक के एपिसोड में दिखाया गया कि पांडवों को चौसर खेलने का निमंत्रण मिलता है और वे इस निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं. भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और विदुर इस द्यूत क्रीड़ा का परिणाम जानते हैं लेकिन दुर्योधन के हठ के आगे विवश हैं और चुप्पी साधे इस क्रीड़ा में शामिल हुए हैं.
आरंभ हुआ चौसर का खेल
द्यूत क्रीड़ा गृह में सबसे पहले भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और विदुर आकर अपना स्थान ग्रहण करते हैं और चुपचाप इस क्रीड़ा को आरंभ होते हुए देख रहे हैं. दुर्योधन, दुशासन, कर्ण और शकुनि भी आते हैं, अपना स्थान ग्रहण करते हैं और पांचों पांडव भीष्म पितामह, कुलगुरु, आचार्य और अपने काकाश्री का आशीर्वाद लेकर अपना स्थान ग्रहण करते हैं. धृतराष्ट्र भी आकर अपना स्थान ग्रहण करते हुए द्यूत क्रीड़ा को आरंभ करने की आज्ञा देते हैं. खेल के शुभारंभ से पहले नियम बनाए जाते हैं, दुर्योधन सबसे कहता है कि दांव तो मैं ही खेलूंगा लेकिन पासे मामा जी फेंकेंगे.
इस बात पर बहस भी होती है, दुर्योधन को क्रोधित होने लगता है और चौसर से उठ जाता है. दुर्योधन को नाराज ना करते हुए युधिष्ठिर उसके नियमों को मान लेता है. युधिष्ठिर शुरू करते हैं खेल को और दांव पर अपनी अनमोल माला लगाते हैं और दुर्योधन भी दांव लगाता है. शकुनि पहला पासा फेंकता है और जीत जाता है. शकुनि ऐसे ही पासों पर पासे फेंकता रहता है और दुर्योधन को जीत पर जीत मिलती है.
फिट युधिष्ठिर 1,18,000 स्वर्ण मुद्राएं और अक्षय धन भंडार दांव पर लगाते हैं वो भी हार जाते हैं. फिर वो अपना रथ दांव पर लगाते हैं, वो भी दुर्योधन शकुनि मामा की मदद से हड़प लेता है. फिर युधिष्ठिर 1,00,000 दासियां और उनके स्वर्ण अलंकारों को दांव पर लगाते हैं, वो भी हार जाते हैं. फिर युधिष्ठिर सोने के औहदे वाले एक हजार हाथी दांव पर लगाते हैं, वो भी हार जाते हैं. फिर युधिष्ठिर अपना सारा धन दांव पर लगाते हैं, दुर्योधन उस धन को भी जीत लेता है. फिर अपनी भूमि, प्रजा और प्रजा का धन दांव पर लगाते हैं, वो भी हाथ से निकल जाता है.
इंद्रप्रस्थ को जीतकर दुर्योधन, शकुनि और दुशासन बहुत खुश होते हैं. फिर युधिष्ठिर अपने भाई नकुल को दांव पर लगाते हैं, फिर सहदेव को, फिर अर्जुन को, फिर भीम को. एक-एक कर वो अपने सभी भाइयों को हार जाते हैं. ये द्यूत क्रीड़ा देख भीष्म को क्रोध भी आता है, लेकिन वो विवश होकर अपने क्रोध को अंदर ही अंदर दबा रहे हैं.
फिर युधिष्ठिर अपने आप को दांव पर लगा देता है और हार जाता है. द्यूत क्रीड़ा हारने के बाद युधिष्ठिर इस क्रीड़ा को समाप्त करने के लिए कहते हैं क्योंकि अब उनके पास दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन दुर्योधन अब भी अपने अपमान का बदला लेना चाहता है. इसीलिए वो द्रौपदी को दांव पर लगाने को कहता है, ये सुनकर विदुर को खड़ा होना ही पड़ा और उसने धृतराष्ट्र को अपने बेटे दुर्योधन को त्यागने को कहता है जिसने हस्तिनापुर की कुलवधू का भारी सभा में अनादर किया, ये सुन दुर्योधन आग बबूला हो गया और उसने विदुर का अपमान कर दिया और धृतराष्ट्र ने कुछ नहीं कहा. युधिष्ठिर को विवश होकर द्रौपदी को दांव पर लगाना पड़ा और वो उसे भी हार गया. दुर्योधन तो अपने अपमान का बदला लेना चाहता था इसलिए उसे जीतकर उसने द्रौपदी को इस सभा में लाने का आदेश दिया.
दुर्योधन का अत्याचार
वहां द्रौपदी राजमहल में आराम कर रही है, द्यूत क्रीड़ा का दास आकर द्रौपदी को बताता है कि युधिष्ठिर द्यूत क्रीड़ा में अपना सब कुछ हार गए हैं, और अपने भाइयों को भी हार गए. फिर रोते हुए द्वारपाल ये भी बताता है कि युधिष्ठिर द्रौपदी को भी हार गए हैं. जिसे सुनकर द्रौपदी के होश उड़ जाते हैं. रोते हुए द्वारपाल ये भी बताता है कि दुर्योधन ने द्रौपदी को द्यूत क्रीड़ा गृह में आने का आदेश दिया है. लेकिन द्रौपदी वहां जाने से इनकार कर देती है.
यहां क्रीड़ा गृह में कृपाचार्य धृतराष्ट को ये खेल समाप्त करने को कहते हैं लेकिन दुर्योधन उनका अपमान कर उन्हें चुप कराकर उनके स्थान पर बैठने के लिए कहता है. ये देख भीष्म खड़े होते हैं, लेकिन दुर्योधन उन्हें भी शांत करा देता है. विकर्ण भी भीष्म पितामह का साथ देते हुए दुर्योधन के खिलाफ हो जाता है लेकिन दुर्योधन उसे भी अपनी जगह पर बैठने को कहता है. इतना ही नहीं वो पांचों पांडव जो अब दुर्योधन के दास बन गए हैं उन्हें भी दुर्योधन मुकुट उतारकर अपने चरणों में रखने को कहता है.
उसी वक्त वहां द्वारपाल आता है जिसे अकेला देख दुर्योधन सवाल पूछता है. और द्वारपाल बताता है कि महारानी ने युधिष्ठिर से अपने सवालों का जवाब मांगा है जिसे जाने बिना वो नहीं आएंगी. ये सुन दुर्योधन उसके गालों पर थप्पड़ जड़ देता है और कहता है कि दास और दासी को महाराज और रानी की उपाधि देकर उसने दुर्योधन का अपमान किया है. जिसपर वो द्वारपाल से कहते हैं कि द्रोपदी को जो सवाल करने हैं वो यह द्यूत क्रीड़ा भवन में आकर करे. दुर्योधन की आज्ञा का पालन कर द्वारपाल फिर द्रौपदी के कक्ष में जाता है. इसपर द्रौपदी द्वारपाल से कहती है कि वो बड़ों की आज्ञा का पालन करेगी यदि पितामह, ज्येष्ठ पिता और काका चाहते हैं तो वो अवश्य आएगी. द्वारपाल द्रौपदी की कही बात दुर्योधन को बताता है तब दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी के बाल पकड़कर घसीटते हुए लाने का आदेश देता है.
दुशासन ने लांघी मर्यादा, किया भाभी का अपमान
दुशासन द्रौपदी के कक्ष में आता है और द्रौपदी का अनादर करते हुए उसके बाल पकड़कर उसे घसीटता हुआ द्यूत क्रीड़ा गृह ले जाता है. द्रौपदी बहुत कोशिश करती है लेकिन कुछ नहीं कर पाती.
अपनी कुल मर्यादा को खींचता हुआ दुशासन क्रीड़ा गृह में द्रौपदी को ले आता है. द्रौपदी को देख दुर्योधन, दुशासन से कहता है कि वो उसे दुर्योधन की जंघा पर बैठाए. भीम ये अपमान सह ना सका और उसने दुर्योधन को वचन दिया कि वो उसकी जंघा तोड़ देगा. द्रौपदी दुशासन का हाथ छुड़ाकर ज्येष्ठ पिताश्री, भीष्म पितामह, काकाश्री विदुर, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य की तरफ देखती है,सभी आंखों में आंसू लिए और नजरें झुकाए बैठे हैं. तभी द्रौपदी रोते हुए भीष्म पितामह से आशीर्वाद मांगती है. भीष्म पितामह चुपचाप बैठे इस अपमान का घूंट पी रहे हैं. द्रौपदी सबसे एक-एक कर सवाल पूछती है, लेकिन उसको कोई उत्तर नहीं मिलता. जब सब उसे विवश दिखते हैं तो द्रौपदी युधिष्ठिर से सवाल करती है कि वो कैसे अपनी पत्नी को दांव पर लगा सकते हैं. इसपर भीम भी अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर से कहता है कि अगर उस जगह युधिष्ठिर ना होकर कोई और होता तो उनकी भुजाएं उखाड़कर फेंक देता.
द्रौपदी का वस्त्रहरण
वहीं कर्ण भी द्रौपदी से कहता है कि पांच की पत्नी होने के साथ-साथ छठें को अपना बनाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए, कर्ण ने द्रौपदी को वेश्या तक बोल दिया. जिसे सुनकर पांचों पांडव को क्रोध आया लेकिन युधिष्ठिर ने युद्ध होने से रोक लिया. इसपर अर्जुन कर्ण को वचन देता है कि वो इस अपमान का बदला एक दिन उससे ज़रूर लेगा. फिर दुर्योधन दुशासन को आदेश देता है द्रौपदी को नग्न करने की.
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भीम दुशासन को रोकते हुए कहता है कि अगर उसने पांचाली के वस्त्र को हाथ भी लगाया तो वो उसके हाथ तोड़ देगा. इसपर दुशासन भीम से कहता है कि वो खुद अपने हाथों से वस्त्र उतार दे नहीं तो उसे हाथ लगाना ही होगा. दुशासन अपनी कुल मर्यादा को भूलकर द्रौपदी के वस्त्रों पर हाथ लगता है और द्रौपदी कृष्ण से हाथ जोड़कर अपनी लाज बचाने की विनती करती है. उधर दुशासन द्रौपदी की साड़ी उतारना शुरू करता है और इधर कृष्ण मुरारी द्रौपदी की लाज बचाने आ जाते हैं, जो धागा द्रौपदी ने शिशुपाल के वध के बाद कृष्ण की उंगली में बांधा था उसका ऋण चुकाने. दुशासन साड़ी खींचता जाता है लेकिन साड़ी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही.
आखिरकार दुशासन थककर हार मान लेता है. द्रौपदी की बढ़ती हुई साड़ी को देख सभी पांडव, भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और विदुर शुक्र मनाते हैं. तभी भीम उठ खड़ा हुआ और सभी के सामने प्रतिज्ञा लेते हुए कहा कि, ‘मैं पाण्डु पुत्र भीम ये घोषणा करता हूं कि जब तक रणभूमि में मैं इस दुशासन का छाती चीकर उसका लहू नहीं पी लूंगा, तब तक मैं अपने पूर्वजों को अपना मुंह नही दिखाऊंगा.’ विदुर भी रोते हुए खड़े होते हैं और भीष्म, धृतराष्ट्र, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य से द्रौपदी के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कहते हैं. द्रौपदी रोते हुए उठती है अपने चीरहरण पर कुरुवंश पर प्रश्न करती है और क्रोध में आकर श्राप देने ही वाली होती है कि तभी उस सभा में गांधारी आ जाती हैं जो द्रौपदी को रोक लेती है.